Ambubachi Mela 2025 : मां कामाख्या देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है यहां माता सती के अंग गिरे थे और इस स्थान पर माता सती की योनि गिरी थी। इस कारण इस जगह का बहुत महत्व माना जाता है। यहां तीन दिवसीय अंबुबाची महोत्सव मनाया जाता है। साल में एक बार मंदिर के कपाट को तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाता है क्योंकि माना जाता हैं कि माता इन तीन दिनों तक रजस्वला स्थिति अर्थात मासिक धर्म में होती है। इस साल अंबुबाची मेला 22 जून से 26 जून तक चलेगा।
तीन दिन तक होते मंदिर के कपाट बंद
असम के गुवाहाटी में मां कामाख्या धाम है। यह मंदिर भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। क्योंकि इस मंदिर के कपाट तीन दिन के लिए पूरी तरह से बंद कर दिए जाते हैं और मां इन दिन दिनों तक वार्षिक मासिक धर्म की स्थिति में होती है। कहा जाता है कि अंबुबाची मेला देवी के विश्राम का समय होता है। इसलिए मंदिर के गर्भगृह के कपाट सभी के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इन तीन दिनों तक न तो कोई मां के दर्शन का सकता है और न ही कोई पूजा। इन तीन दिनों के बाद चौथे दिन कपाट खोले जाते हैं। मां की शुद्धि और स्नान किया जाता है और कपाट खोले जाते हैं इसके बाद भक्तों मां के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात है कि यहां अन्य मंदिरों की तरह कोई मूर्ति नहीं है बल्कि योनि के आकार की चट्टान की पूजा होती है। यह स्त्री प्रजनन शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
क्या होता है अंबुबाची मेला?
असम के गुवाहाटी में कामाख्या धाम में अंबुबाची मेला का आयोजन किया जाता है। यह मेला तीन दिन तक लगता है। हजारों की संख्या में भक्त इस मेले में एकत्रित होते हैं। साल 2025 में यह मेला 22 जून से प्रारंभ हुआ है। यह मेला भारत में सबसे लोकप्रिय और खास मेला माना जाता है। इस समय पर यहां पर विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। हालांकि तीन दिनों तक मंदिर के कपाट बंद होते हैं क्योंकि माता मासिक धर्म की स्थिति में होती है। परंतु मेला मंदिर के पास लगता है इसलिए यहां में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। जहां दुनिया में मासिक धर्म को लेकर शर्म महसूस की जाती है और इस विषय पर चुप्पी साध ली जाती है वहीं कामाख्या मंदिर में माता की इसी स्थिति में पूजा की जाती है। इसका अर्थ है कि इस दौरान प्रकृति चक्र का सम्मान किया जाता है। यह समय मां के विश्राम और शुद्धिकरण का होता है।
क्या होता है रजस्वला वस्त्र?
जब मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं उससे पहले एक सफेद कपड़ा गर्भ गृह में रखा जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो इस वस्त्र का रंगल लाल होता है। इसके बाद इस वस्त्र को प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। इस वस्त्र को राजस्वला वस्त्र के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव सृजन की शक्ति का संकेत को दर्शाता है। यह उत्सव महिला शक्ति और सृजन की शक्ति को सम्मान देने के लिए किया जाता है। यह परंपरा काफी समय से निभाई जाती है। कहा जाता है कि पूर्वी भारत में कई जगहों पर कृषि से संबंधित कोई कार्य नहीं होते है।
डिस्क्लेमर- इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट, लोक मान्यताओं और अन्य माध्यमों से ली गई है। जागरण टीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।